तुम मेरी भावना हो मेरी चाह हो, मेरे आशाओं की अभिलाषा हो। मेरे ह्रदय का मर्म हो मेरा धर्म हो, मेरे अभिब्यक्तियो की भाषा हो। मेरा स्वाद, वाद और संवाद हो, मेरे जीवन की परिभाषा हो। तुझ बिन जीवन अपूर्ण है मेरा, मैं हूँ कृष्ण तूम मेरी राधा हो।
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मैं धर्मान्ध हूं
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मैं धर्मान्ध हूं हाँ मैं धर्मान्ध हूं । मैं अंधभक्त हूं । मुझे किसी धर्म में आस्था नही है सिवाय मेरे धर्म के। और मैं मानता हूं कि इंसानियत से बड़ा या बढ़िया कोई भी धर्म और इंसानों से श्रेस्ठ कोई भी सम्प्रदाय इस धरती पर मौजूद नही है। यही मेरा धर्म है और मैं इसका कट्टर समर्थक। मेरा मानना है कि अगर हम सिर्फ अपने ह्रदय की आवाज सुने तो हमे किसी भी पुस्तक या किसी गुरु की आवाज सुनने की जरूरत नही पड़ेगी। जैसे हमारे सामने कोई ब्यक्ति गिर जाता है तो हम उससे बिना उसका नाम , धर्म पूछे तुरंत उसे उठाते हैं । ये हम बिना ज्यादा सोचे अपने अंतरात्मा की आवाज को सुन कर करते हैं। बस यही तो इंसानियत है । मतलव आपको किसी धर्म या बाबा के बहकावे में आके दूसरे धर्म के लोगो से लड़ाई नही करनी है। ये बहस ही क्यों हो कि कौन सा धर्म अच्छा है कौन सा बुरा। हिंदुओं को बाबाओं के चंगुल से निकलना पड़ेगा और मुसलमानों को मौलवियों के। आओ मिल कर एक नए सवेरे को जन्म दे जिसमे सभी के लिए समान भाव तथा समान स्नेह हो।
द्वंद
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द्वंद ये कहानी है या समस्या पता नही बस अब इस कहानी का अंत तभी होगा जब इस समस्या का समाधान हो जाये । इसकी शुरुआत तो काफी पहले हुई लेकिन अंत अभी धूमिल है। ये लड़ाई विचारों की है, मनोभावों की है, जो किस ब्यक्ति को एक शांत स्थान पर शोर शराबे से परेशान कर सकती है । ये शोर शराबा कही और नही उसके मस्तिक में होता है जो ब्यक्ति को विचारों के ऐसे दलदल में ले जाता है जहां वो दिन प्रतिदिन ओर फसता जाता है और एक दिन ये लंबी जिंदगी समाप्त हो जाती है चुकी जब किसी एक प्रश्न का उत्तर मिलता है वो अनेको दूसरे प्रश्नों को जन्म देता है यही द्वंद जीवनपर्यन्त व्यक्ति को उलझाये रखते हैं। वो कहते हैं ना कि प्यार उसी को होता है जो करना चाहता है उसी प्रकार विचार उसी को आते है जिसको इसमें मजा आता है नही तो अन्य व्यक्ति की तरह ये लोग भी सांसारिक सुख का मजा लेते बजाय विचारों में उलझने के। इसकी शुरुआत बचपन से ही हो जाती है जैसे बड़े बुजुर्गों ने कहा है कि पूत के पांव पालने में ही दिख जाते हैं उसी प्रकार ऐसे लोग बचपन से ही प्रश्नों का अंबार लगाते है परंतु वो ज्यादा फसते हैं जिनके प्रश्नों...