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मैं धर्मान्ध हूं

 मैं धर्मान्ध हूं हाँ मैं धर्मान्ध हूं । मैं अंधभक्त हूं । मुझे किसी धर्म में आस्था नही है सिवाय मेरे धर्म के। और मैं मानता हूं कि इंसानियत से बड़ा या बढ़िया कोई भी धर्म और इंसानों से श्रेस्ठ कोई भी सम्प्रदाय इस धरती पर मौजूद नही है। यही मेरा धर्म है और मैं इसका कट्टर समर्थक।  मेरा मानना है कि अगर हम सिर्फ अपने ह्रदय की आवाज सुने तो हमे किसी भी पुस्तक या किसी गुरु की आवाज सुनने की जरूरत नही पड़ेगी। जैसे हमारे सामने कोई ब्यक्ति गिर जाता है तो हम उससे बिना उसका नाम , धर्म पूछे तुरंत उसे उठाते हैं । ये हम बिना ज्यादा सोचे अपने अंतरात्मा की आवाज को सुन कर करते हैं। बस यही तो इंसानियत है । मतलव आपको किसी धर्म या बाबा के बहकावे में आके दूसरे धर्म के लोगो से लड़ाई नही करनी है। ये बहस ही क्यों हो कि कौन सा धर्म अच्छा है कौन सा बुरा। हिंदुओं को बाबाओं के चंगुल से निकलना पड़ेगा और मुसलमानों को मौलवियों के। आओ मिल कर एक नए सवेरे को जन्म दे जिसमे सभी के लिए समान भाव तथा समान स्नेह हो।